एनीमिया (Anemia) :
खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाना। इसके कारण कमजोरी होना थोड़ा काम ही थकावट महसूस होना, साँस फूलना इत्यादि तकलीफें होती है।
एरीथ्रोपोएटिन :
एरीथ्रोपोएटिन रक्तकणों के उत्पादन के लिए एक जरुरी पदार्थ है। यह पदार्थ किडनी में बनता है। किडनी फेल्योर के मरीजों में एरीथ्रोपोएटिन का उत्पादन कम होने से हड्डियों की मज्जा (अस्थिमज्जा- Bone Marrow) में रक्तकाण का उत्पादन घटने लगता है, जिससे एनीमिया होना है।
ए. वी. फिस्च्युला (Arterio Venous Fistula) :
ऑपरेशन द्वारा कृत्रिम रूप से धमनी और शिरा को जोड़ना। धमनी से अधिक दबाव के साथ ज्यादा आने के कारण कुछ अप्ताह बाद शिरा फूल जाती है और उससे गुजरनेवाले खून की मात्रा बढ़ जाती है। इस फूली हुई नस में खास प्रकार की मोती सुई डाल कर हीमोडायलिसिस के लिए खून लिया जाता है।
ब्लडप्रेशर (Blood Pressure B.P) :
खून का दबाव, रक्तचाप
बी.पी.एच. (B.P.H - Benign Prostatic Hypertrophy) :
बड़ी उम्र के पुरुषों में प्रोस्टेट का आकर बढ़ने से पेशाब निकलने में तकलीफ होना।
केडेवर किडनी प्रत्यारोपण (Cadevar Kidney Transplantation) :
ब्रेन डेथ होने पर उस व्यक्ति की एक तन्दुरुस्त किडनी निकाल कर क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज में ऑपरेशन द्वारा किडनी प्रत्यारोपण करना।
कैल्सियम :
शरीर की हड्डियों, स्नायु और ज्ञानतंतु की तन्दुरुस्ती और योग्य कार्य के लिए आवश्यक खनिज तत्व, जो दूध और दूध की बनी चीजों से मिलता है।
क्रीएटिनिन और यूरिया :
क्रीएटिनिन और यूरिया दोनों ही शरीर में नाइट्रोजन मेटाबोलिज्म में बननेवाले अनुपयोगी उत्सर्जी पदार्थ (कचरा) है, जिसको किडनी द्वारा बहार निकाला जाता है।
सामान्यतः खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 0.8 से 1.4 मि. ग्रा. प्रतिशत और और यूरिया की मात्रा 20 से 40 मि. ग्रा. प्रतिशत होती है। किडनी फेल्योर के होने पर इसमें बढ़ोतरी देखी जाती है। किडनी फेल्योर के निदान एवं नियमन के लिए ये प्रमुख जाँच है।
सिस्टोस्कोपी (Cystoscopy) :
खास प्रकार के दूरबीन (Cystoscopy) की मदद से मूत्रशय के अंदर के भाग की जाँच।
डायालाईजर (Dialyser) :
हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया में खून को शुद्ध करने का काम करनेवाली कृत्रिम किडनी ।
डायालिसिस (Dialysis) :
जब किडनी काम नहीं करती है, ऐसी स्थिति में किडनी के काम के विकल्प के रूप में शरीर से गैरजरूरी पदार्थ और पानी को निकलनेवाली कृत्रिम पध्दति को डायालिसिस कहते हैं।
डबल ल्यूमेन केथेटर (डी. एल. सी.) :
जब तुरंत हीमोडायालिसिस करने की जरूरत पडती है, तब शरीर में से खून बहार निकालने के लिए उपयोग किया जानेवाला केथेटर । अंदर से इस केथेटर के दो भाग होते हैं - उसमें से एक भाग शुद्धीकरण क लिए खून बहार लाने में और दुसरा भाग शुद्धीकरण के बाद खून को शरीर के अंदर भेजने में उपयोग किया जाता है।
इलेक्ट्रोलाइट्स :
शरीर में मौजूद क्षार तत्व जैसे सोडियम, पोटैशियम, क्लोराइड वगैरह। इन तत्वों का खून में सामान्य प्रमाण खून के दबाव का नियमन और स्नायु, ज्ञानतंतु इत्यादि के योग्य कार्य में मदद करता है।
फिमोरल वेन (Femoral Vein) :
पैर से खून का वहन करनेवाली जाँघ में स्थित मोटी शिरा। इस शिरा में डबल ल्यूमेन केथेटर डालकर हीमोडायालिसिस के लिए खून निकाला जाता है।
फिस्च्युला नीडल :
हीमोडायालिसिस के लिए खून निकालने के लिए फूली हुई शिरा (ए. वी. फिस्च्युला) में रखी जानेवाली बडी सुई।
ग्लोमेरुलोनेफ्रोइटिस :
इस प्रकार के किडनी के रोग में सामान्यतः सूजन, उच्च रक्तचाप, पेशाब
में रक्तकण और प्रोटीन की उपस्थिति और कई बार किडनी फेल्योर दिखाई देता है।
हीमोडायलिसिस (H.D)- खून का डायलिसिस :
हीमोडायलिसिस मशीन की सहायता से कृत्रिम किडनी (डायलाइजर) में खून शुद्ध करने की कृत्रिम पद्धति।
हीमोग्लोबिन :
हीमोग्लोबिन रक्तकण में पाया जानेवाला एक पदार्थ है जिसका काम शरीर में आक्सीजन पहुँचाना है। खून की जाँच में हीमोग्लोबिन की मात्रा जानी जा सकती है। खून में हीमोग्लोबिन काम होने से होनेवाली बीमारी को एनीमिया कहते है।
हाइपरटेंशन :
उच्च रक्तचाप ,रक्त का ऊँचा दबाव , हाई ब्लडप्रेशर।
इम्यूनो सप्रेसन्ट दवायें (Immuno Suppresent Drugs) :
किडनी प्रत्यारोपण के बाद हमेंशा ली जाने वाली एक खास प्रकार की दवायें। यह दवायें शरीर की प्रतिरोधक शक्ति की विशिष्ट रूप से असर करती है और किडनी रिजेक्शन की संभावना को कम करती है। परन्तु रोग से लड़ने की शक्ति को यथावत बनाये रखती है। इस प्रकार की दवाओं में प्रेडनिसोलोन सायक्लोस्पोरीन, एम.एम .एफ., एजाथायोप्रीम, इत्यादि दवा का समावेश होता है।
इन्ट्रावीनस पायलोग्राफी (आई.वी.पी.) :
किडनी की खास प्रकार की एक्सरे की जाँच। यह जाँच आयोडीनवाली दवा (डाई) का इन्जेक्शन देकर की जाती है। इस तरह के पेट के एक्सरे की जाँच में ‘डाई’ किडनी में से मूत्रवाहिनी में होकर मूत्राशय में जाती
दिखाई देती है। इस जाँच से किडनी की कार्यक्षमता और मूत्रमार्ग की रचना की जानकारी मिलती है।
जुग्युलर वेन (I. J. V. Internal Jugular Vein) :
सिर और गले के भाग में खून वहन करती बड़ी शिरा, जो गले में कन्धे के ऊपरी भाग में होती है। इस नस में डबल ल्यूमेन के थेटर डालकर हीमोडायलिसिस के खून निकल जाता है।
किडनी बायोप्सी :
निदान के लिए किडनी में से सुई की मदद से पतला धागा जैसा भाग लेकर उसकी माइक्रोस्कोप द्वारा जाँच करना।
किडनी फेल्योर :
दोनों किडनी की कार्यक्षमता में कमी होना खून में क्रीएटिनिनऔर यूरिया की मात्रा में वृद्धि किडनी फेल्योर का संकेत है ।
एक्यूट किडनी फेल्योर :
सामान्य रूप से काम करने वाली दोनों किडनी का अचानक कम समय में बंद हो जाना , इस प्रकार खराब हुई किडनी पुनः पूरी तरह काम कर सकती है।
क्रोनिक किडनी फेल्योर :
धीरे धीरे लम्बे समय में पुनः ठीक नहीं हो सके इस प्रकार दोनों किडनी की कार्यक्षमता में कमी होना ।
किडनी प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation) :
क्रोनिक किडनी फेल्योर के मरीज दूसरे व्यक्ति की एक स्वस्थ किडनी लगाने का ऑपरेशन।
किडनी रिजेक्शन :
किडनी प्रत्यारोपण के बाद शरीर की प्रतिरोधक शक्ति के कारन नई -प्रत्यारोपित किडनी को नुकसान होना।
लीथोट्रीप्सी (ESWL) :
ऑपरेशन बिना , पथरी के उपचार की अधूमिक पद्धति। इस उपचार में मशीन द्वारा उत्पन्न किये गए शक्तिशाली स्ट्रोक से पथरी का चुरा किया जाता है , जो पेशाब द्वारा बाहर निकलता है।
माइक्रोअल्ब्यूमिनुरिया :
पेशाब में बहुत ही कम मात्रा में जानेवाला अल्ब्यूमिन के निदान की खास जाँच। डायबिटीज की वजह से किडनी को होनेवाले नुकसान के प्रारंभिक निदान के लिए यह श्रेष्ठ सर्वोत्तम परिक्षण है।
एम. सी . यू (Micturating Cysto Urethrogram) :
विशेष प्रकार की आयोडीनवाली डाई को केथेटर द्वारा मूत्राशय में डालने के बाद , पेशाब करने की क्रिया के दौरान मूत्रमार्ग के एक्सरे की जाँच।
नेफ्रोलॉजिस्ट :
किडनेके विशेषज्ञ फिजिशियन।
नेफ्रोन :
किडनी में आये बारीक फिल्टर जैसे भाग जो खून को शुद्ध करके पेशाब बनाते है। प्रत्येक किडनी में दस लाख नेफ्रोन होते है।
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम :
अधिकांश बचो में होने वाला किडनी का रोग है, जिससे पेशाब में प्रोटीन जाने के कारण शरीर का प्रोटीन काम हो जाता है , जिससे सूजन दिखाई देती है।
पी. यू. जे. ऑब्स्ट्रक्शन :
एक जन्मजात क्षति जिससे किडनी और मूत्रवाहिनी को जोड़नेवाला भाग सिकुड़ जाता है। इस तरह पेशाब के मार्ग में अवरोध आने से किडनी फूल जाती है।
पेरिटोनियल डायालिसिस (पी . डी.) पेट का डायालिसिस :
पेट में, खूब सारे छेदवाला खास प्रकार का केथेटर डालकर खास प्रकार के द्रव ( पी .डी फ्लूइड् - P. D. Fluid) की मदद से शरीर में से कचरा दूर करने की शुद्धिकरण की पद्धति।
फॉस्फोरस :
शरीर में पाया जानेवाला जरुरी खनिज तत्व, जो हड्डियों और दाँत की रचना , विकास और तन्दुरूस्ती के लिए जरुरी है। यह तत्व दूध , दूध की बनावट, सुख मेवा दाल, अण्डा मांस इत्यादि चीजों से मिलता है।
पोलिसिस्टिक किडनी डिजीज (पी .के .डी ) :
सबसे ज्यादा दिखने वाला वंशानुगत रोग इस रोग में दोनों किडनी में बहुत सिस्ट दिखाई देते है इन असंख्य सिस्टो के आकर बढ़ने के साथ किडनी का आकर भी बढ़ने लगता है। पी .के डी के कारण बढ़ती उम्र के साथ साथ खून का दबाव भी बढ़ है और क्रोनिक किडनी फेल्योर हो सकता है।
पोटैशियम :
इस खनिज तत्व की खून में सामान्य मात्रा स्नायु के उचित कार्य करने तथा ह्रदय की धड़कनें सामान्य रखने के लिए आवश्यक है। फल, फलों का रस, नारियल का पानी, सुख मेवा वगैरह चीजों में पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है।
प्रोटीन :
आहार में मुख्या पोषक तत्वों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और चर्बी का समावेश होता है। प्रोटीन शरीर एवं स्नायु की रचना और विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
रीनल आर्टरी (Renal Artery) :
किडनी को खून पहुँचानेवाली धमनी ।
अर्धपारगम्य (Semipermeable) :
चलनी जैसी झिल्ली, जो सिर्फ छोटे कणो को निकलने देती है। परन्तु उसमे से बड़े कण नहीं निकल सकते है।
सेप्टीसेमिया (Septicemia) :
खून में संक्रमण का गंभीर असर ।
सोडियम :
सोडियम शरीर के पानी और खून के दबाव को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह एक खनिज तत्व है। सोडियमवाला सबसे अधिक प्रयोग किया जानेवाला पदार्थ है।
सोनोग्राफी :
आवाज की तरंगो की मदद से की जानेवाली एक जाँच। यह जाँच किडनी के आकर , रचना , स्थान और किडनी के मार्ग में आये अवरोध , पथरी और गाँठ इत्यादि की जानकारी देती है ।
सबक्लेवियन वेन (Subclavian Vein) :
हाथ और छाती के ऊपर के भाग में से खून वहन करनेवाली मोटी शिरा यह शिरा कंधे के भाग में क्लेविकल हड्डी के पीछे होती है इस शिरा में डबल ल्यूमेन केथेटर डालकर हीमोडायलिसिस किया जाता है।
टी. यु. आर. पी. :
बड़ी उम्र में प्रोस्टेट का कद बढ़ने से होनेवाली तकलीफ़ (बी. पी. एच.) के उपचार की विशिष्ट पद्धति जिस में बिना ऑपरेशन , दूरबीन की मदद से मरीज के प्रोस्टेट की गाँठ को दूर किया जाता है।
यूरोलॉजिस्ट :
किडनी के विशेषज्ञ सर्जन।
वी. यु. आर. :
मूत्राशय और मूत्रवाहिनी के बीच स्थित वाल्व में जन्मजात क्षति की वजह से पेशाब मूत्राशय में से उलटी तरफ मूत्रवाहिनी में जाता है। वी. यु. आर. बच्चों में मूत्रमार्ग में संक्रमण , उच्च रक्तचाप और क्रोनिक किडनी फेल्योर का महत्वपूर्ण कारण है।